तो सचमुच चली जाएगी मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार

आलेख – राकेश अचल ।
मध्यप्रदेश के सियासी   घमासान को लेकर न चाहते हुए भी एक नीरस विषय पर लिखना पड़ रहा है ,क्योंकि देश में कोरोना वायरस के बाद हमारे सूबे की सरकार का भविष्य ही सबसे ज्यादा सुर्ख विषय है ।आप पढ़ें,न पढ़े,अखबार छापें न छापें लेकिन हमें लिखना पड़ता है क्योंकि ये ही हमारा राजधर्म है ।हमारे राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री कमलनाथ से फरसिया इम्तिहान [फ्लोर टेस्ट ]देने के लिए कहा है। मुख्यमंत्री ये काम 26 मार्च को करना चाहते थे लेकिन उन्हें मौक़ा नहीं दिया गया ।

लेखक जाने माने कवि और पत्रकार है।

भाजपा में शामिल हुए नए महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से मुख्यमंत्री कमलनाथ को सदन में बहुमत साबित करने को कहा गया है, वे ऐसा कर पाएंगे या ऐसा करने से पहले ही इस्तीफा दे देंगे ,कहा नहीं जा सकता ,क्योंकि राजनीति में सब कुछ अनिश्चित होता है ।मुख्यमंत्री कमलनाथ लगातार कहते आ रहे हैं कि वे बहुमत साबित कर देंगे,तो उन पर यकीन करना ही पड़ रहा है ।कमलनाथ पुराने खिलाड़ी हैं,पता नहीं उनके पास कौन सी तुरुप अभी बाक़ी हो ?
सदन का गणित उलझा हुआ है। कोई नहीं कह सकता कि-‘ ऊँट किस करवट बैठेगा’? ऊँट की करवट और विधायकों का चरित्र आजकल बेहद उलझने लगा है । ।जो विधायक आज कमलनाथ के साथ खड़े हैं वे कल साथ देंगे या नहीं,कहा नहीं जा सकता। यही बात विपक्ष के खेमें में खड़े विधायकों के बारे में कही जा सकती है ।विधायक जब बिकाऊ घोड़े हो जाते हैं तो अविश्वसनीय हो जाते हैं। मध्यप्रदेश में ही नहीं पूरे देश में यही होता आया है ।
खुदा न खास्ता कमलनाथ की सरकार गिर जाये तो ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पूर्वज राणोजी राव सिंधिया की तरह कामयाब योद्धा साबित हो जायेंगे ।उन्हें अपनी दादी की तरह कामयाब नेता भी मान लिया जाएगा लेकिन हकीकत ये कि ये राजपथ पर लोकपथ की पराजय होगी ।राजहठ के चलते एक चुनी हुई सरकार को गिराना लोकतंत्र में एक अघोषित अपराध है लेकिन हर बार और हर प्रांत में किया जाता है और ये केवल भाजपा ही नहीं कर रही ,कांग्रेस भी करती रही है ।केवल समय,स्थान और नायक बदल जाते हैं ।
राजनीति के इस खेल में जनता केवल मूकदर्शक है।हम जैसे लोग केवल अपना नजला झाड़ लेते हैं लेकिन असल आनंद तो खिलाड़ियों को ही आता है क्योंकि नफा-नुक्सान उन्हीं का होता है ।किसी का मंत्री पद जाता है तो किसी की सदस्यता ।किसी को कुछ मिलता है ,तो किसी को कुछ खोना पड़ता है ।यानि राजनीति में कोई ऐसा दल या व्यक्ति नहीं है जिसने ये पाप न किया हो और जो पापी न हो ।सरकार गिरे या रहे इससे कोई ख़ास फर्क पड़ने वाला नहीं है ।क्योंकि एक सांपनाथ जाता है तो दूसरा नागनाथ आ जाता है ।कुर्सी कभी अनाथ नहीं होती ,अनाथ केवल जनता होती है क्योंकि उसके हाथ में मताधिकार तो होता है किन्तु सत्ता की नाथ नहीं होती ।
मध्यप्रदेश में आज की रात कत्ल की रात है ,योमे शाहदत ,कोई तो शहीद होगा ही चाहे सरकार हो या विपक्ष ।रणभूमि में कौन तो बहेगा ! कोई इसे रोक नहीं कसता क्योंकि दोनों और से आग बराबर लगी हुई है ।ये आग कब बुझेगी और कैसे बुझेगी कोई नहीं जानता ।प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भी ये आग बुझने वाली नहीं है ।ये आग जंगल की आग जैसी प्रचंड है ।इसे बुझाना जनता के बस की बात नहीं ।इसे नेता ही बुझा सकते हैं और उन्हें ये काम पसंद नहीं है ।वे तो आग जलाये रखना चाहते हैं ,क्योंकि उन्हें इसी आग से गरमी मिलती है ।
अंकगणित के आधार पर हमने बीते वर्षों में अनेक सरकारों को औंधे मुंह गिरते देखा है। अटल बिहारी बाजपेयी जैसे सूरमा भी इस आग में जलने से अपने आपको नहीं बचा पाए थे तो कमलनाथ किस खेत कोई उपज हैं ? फिर भी सस्पेंस बरकरार है ।रोमांच बना हुआ है ,सो आइये मजा लीजिये इस राजनैतिक प्रहसन का ।कल फिर मिलेंगे ,माथा- मारी करने के लिए
साभार आलेख- लेेखक जाने माने   कवि और पत्रकार है । @ राकेश अचल जी ग्वालियर।