14 साल के वनवास के बाद पटेल बने “राजकुमार”
रिपब्लिक टुडे, भोपाल।
मध्य प्रदेश की चर्चित सीट भोजपुर इस चुनाव में फिर चर्चा में है भाजपा का गढ़ मानी जा रही इस सीट पर 14 वर्ष के राजनेतिक वनवास के बाद दिग्विजय सिंह सरकार में शिक्षा मंत्री रहे राजकुमार पटेल को टिकिट देकर उनकी वापिसी की गई है, दरअसल 2009 के लोकसभा चुनाव में विदिशा संसदीय सीट से सुषमा स्वराज के सामने राजकुमार पटेल को कांग्रेस ने टिकिट देकर विश्वास जताया था लेकिन बी फार्म जमा नही कर पाने के चलते , सीधा फायदा सुषमा स्वराज को हुआ। जिसके बाद राजकुमार पटेल पर कई आरोप भी लगे , क्योकि राजकुमार पटेल सीएम शिवराज चौहान के करीबी रिश्तेदार भी है।
2009 से लगातार पटेल को कांग्रेस ने चुनाव से दूर रखा , न उन्हें बुदनी से टिकिट दिया गया न ही भोपाल की किसी सीट को फतह करने तैयारी के संकेत दिए गए , एक तरफ से कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह खेमे से आने वाले राजकुमार पटेल को हासिये पर रखा गया।
अब भोजपुर सीट से उन्हें प्रत्याशी बनाया गया है , भोजपुर सीट भाजपा के पास 1989 से लगातार रही है भोजपुर को सुरक्षित और आसान सीट मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा जितने तलाशा गया था , पटवा ने सीहोर को छोड़कर भोजपुर को पसंद किया और लगातार यहां से जीतते रहे , 1999 में सुंदरलाल पटवा होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री बनाये गए , तब अपने उत्तराधिकारी के रूप में पटवा ने अपने भतीजे सुरेंद्र पटवा को 2003 में विधानसभा चुनाव में टिकिट दिया लेकिन इस सीट पर जातिगत समीकरण में उलझकर सुरेंद्र पटवा चुनाव हार गये , यहां से कांग्रेस के राजेश पटेल ने चुनाव जीता, लेकिन 2008 से लगातार 3 बार सुरेंद्र पटवा कांग्रेस के बड़े नेता सुरेश पचौरी को हराकर , विधानसभा पहुच रहे है।
शिवराज सरकार ने उन्हें मंत्री भी बनाया, अब राजकुमार पटेल को यहां के पुरविया, किरार वोटरों को साधने और सुरेंद्र पटवा के विरोध के चलते मैदान में उतारा गया है।
सुरेंद्र पटवा के ऊपर उनकी ही विधानसभा क्षेत्र के लोगो ने लाखों के लेनदेन के आरोप लगाए है उनकी शिकायत सीएम शिवराज तक लोगो ने की है इतना ही नही पटवा के विरुद्ध चेक बॉउन्स के प्रकरण भी विचाराधीन है।
भोजपुर सीट पर सुरेंद्र पटवा को पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा से जुड़े पुराने लोगो का भरोसा है, लेकिन अब इस सीट का राजनीतिक परिदृश्य बदल रहा है , अधौगिक क्षेत्र मंडीदीप से लेकर अब्दुल्ला गंज और बरेली तक विकास की आस में आज भी लोग बैठे है।
यदि बदलाव की बयार चली तो इस चुनाव में पटवा को सीट निकालना मुश्किल हो सकता है और 14 वर्षो का वनवास काटकर लौटे पटेल राजकुमार को फायदा हो सकता है।