कांग्रेस का हाथ या महागठबंधन के साथ, क्या है चंद्रशेखर आजाद की स्ट्रेटजी?

यूपी में महागठबंधन से मुंह की खाने के बाद कांग्रेस, अब बसपा को सबक सिखाने के साथ लोकसभा के नतीजों में अपने लिए बेहतर गुंजाइश चाहिए. कांग्रेस को लग रहा है कि इस काम में चंद्रशेखर उसके काम आ सकते हैं.

भीम आर्मी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश में दलित आंदोलन के पोस्टर बॉय बन चुके चंद्रशेखर आजाद लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की सियासत में अचानक महत्वपूर्ण हो गए हैं. दरअसल, बुधवार को कांग्रेस की महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने चंद्रशेखर से मुलाक़ात की. इसके कुछ ही देर बाद लखनऊ में अखिलेश यादव ने भी मायावती से मीटिंग की.

दलित नेता से प्रियंका की मुलाक़ात के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि चंद्रशेखर, लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का हाथ थामने जा रहे हैं. उन्हें पार्टी की ओर से लोकसभा का उम्मीदवार भी बनाया जा सकता है. या दलित नेता के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है. हालांकि दोनों नेताओं की मीटिंग महत्वपूर्ण है. लेकिन ये बिल्कुल साफ़ है कि चंद्रशेखर, लोकसभा का चुनाव तो लड़ना चाहते हैं, पर “कांग्रेसी” बनकर नहीं. भीम आर्मी के संस्थापक को लेकर कांग्रेस का भी रुख कुछ ऐसा ही है.

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प्रियंका से जुड़े करीबी सूत्र ने बताया भी, “हम न तो चंद्रशेखर को अपनी पार्टी में शामिल करना चाहते हैं और न ही उन्हें अपने टिकट पर कहीं से चुनाव लड़ाना चाहते हैं.” हालांकि वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले चंद्रशेखर की मांग है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में उन्हें समर्थन दे. कांग्रेस, दलित नेता की मांग पर राजी भी है. पर उसकी अपनी भी कुछ शर्तें हैं. हालांकि इस सहयोग के बदले कांग्रेस, दलित नेता का इस्तेमाल अपने चुनावी कैम्पेन में “मन मुताबिक़” करना चाहती है. कांग्रेस की यही शर्त चंद्रशेखर और कांग्रेस के बीच किसी राजनीतिक समझौते की अड़चन बन रही है.

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