मध्यप्रदेश में विधायिका की प्रासंगिकता पर सवाल


मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र निर्धारित समय से 9 दिन पहले ही समाप्त हो गया .सरकार के पास विधानसभा के लिए कोईकामकाज था या नहीं ,ये पूछने और बताने वाला कोई नहीं है .देश में विधानसभाएं हों या संसद अब पूरे समय काम करने से कतराती है.और सरकारें येनकेन सदनों को समय से पहले समाप्त कर भंग खड़ी होती हैं .यानि योजनाबद्ध तरीके से संविधान के एक और स्तम्भ को लंगड़ा किया जा रहा है .
पहले मप्र विधानसभा की ही बात कर लें. 7 मार्च से शुरू हुई विधानसभा का बजट सत्र 25 मार्च तक चलना था लेकिन संसदीय कार्यमंत्री ने इसे तय समय से 9 दिन पहले ही सदन को समाप्त करने का इशारा कर दिया और अध्यक्ष जी ने इशारा पाते ही विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा करते हुए आसंदी छोड़ दी . विपक्ष चिल्लाता रह गया .सवाल ये है कि सरकार के पास विधानसभा के लिए काम क्यों नहीं है ?क्या सचमुच अब सदन में काम करने के लिए सरकार और विपक्ष के पास कुछ बचा ही नहीं है ?इस मुद्दे पर विधायक तो अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है लेकिन कोई दूसरा सवाल नहीं कर सकता .
कांग्रेस ने ऐलान किया कि वो सरकार और स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएगी.कांग्रेस और कर भी क्या सकती है
विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने पर विपक्ष के सवाल पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा सफाई देते हैं कि प्रतिपक्ष के नेता कमलनाथ और गोविंद सिंह से चर्चा के बाद अध्यक्ष ने कार्य सूची में सभी विषय लिए. विपक्ष ने विरोध किया तो कमलनाथ पर उंगली उठाई. जीतू पटवारी को नोटिस देने पर कहा कि विधानसभा की समिति ने पूरी नियम प्रक्रिया के तहत उन्हें नोटिस दिया है. यानि सब एक ही थैली कि चट्टे -बट्टे हैं
विधानसभा अध्यक्ष सरकार का नौकर नहीं बल्कि सदन का मुखिया होता है और सभी विधायकों के हितों की रक्षा करना अध्यक्ष का दायित्व ,लेकिन अध्यक्ष सदन का संचालन सदन के सदस्यों की मर्जी से नहीं सरकार की मर्जी से कर रहे हैं. नियम -कानूनों की ढाल उनके हाथ में पहले से हैं .पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कहते हैं कि -‘ यह गूंगी-बहरी सरकार है. हमारा सरकार के साथ स्पीकर के खिलाफ भी विरोध था, जो विधायकों की रक्षा नहीं कर सकते. उनसे क्या उम्मीद करेंगे. हम स्पीकर और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे. यह झूठ बोलने का काम करते हैं. खुद के बचाव के लिए नेता प्रतिपक्ष पर आरोप लगाते हैं. उन्होंने जीतू पटवारी के नोटिस पर कहा सदस्यों के हितों की रक्षा करने का भार अध्यक्ष पर रहता है. विधानसभा के बाहर किया गया काम इसकी परिधि में नहीं आता. इसके बावजूद इस तरीके के नोटिस दिए गए.
पिछले दशकों में चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो विधानसभा की गरिमा को कम करने की आरोपी रही है. सरकारें जनप्रतिनिधियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं है. जैसे -तैसे प्रश्नकाल चल जाये तो शून्यकाल ताल दिया जाता है .सरकार के पास सदन चलाने का समय नहीं होता लेकिन सिनेमा देखने का समय होता है ,66 साल पुरानी प्रदेश की विधानसभा के हमने सबसे लम्बे सत्र भी देखे हैं और सबसे छोटे सत्र भी देख रहे हैं .
आपको नहीं लगता कि ये सब देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोई साजिश है ?यदि आप इतिहास के पन्ने पलटें तो जान जायेंगे कि स्थिति कितनी गंभीर है .भाजपा के सत्ता में आने के बाद का ही हिसाब देखें तो 29 जनवरी से 9 फरवरी और 5 मार्च से 6 अप्रैल 2018 तक दो चरणों में चले बजट सत्र में 190 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। यानी प्रति मिनट संसद की कार्यवाही पर तीन लाख रुपए से ज्यादा का खर्च आया। संसदीय आंकड़ों की बात करें तो 2016 के शीतकालीन सत्र के दौरान 92 घंटे व्यवधान की वजह से बर्बाद हो गए थे। इस दौरान 144 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। जिसमें 138 करोड़ संसद चलाने पर और 6 करोड़ सांसदों के वेतन, भत्ते और आवास पर खर्च हुए।
अमूमन देश की संसद हो या विधानसभाएं इनमें एक साल के दौरान तीन सत्र होते हैं। इसमें से भी अगर साप्ताहांत और अवकाश को निकाल दिया जाए तो यह समय लगभग तीन महीने का रह जाता है। यानी केवल 70-80 दिन कामकाज होता है जिसमें भी संसद और विधानसभाएं ठीक तरह से चल नहीं पाती है। केवल 1992 में संसद का कामकाज 80 दिनों का हुआ था। हमारे प्रदेश में विधानसभा की कार्रवाई का एक मिनट के संचालन का खर्च करीब 66 हजार रुपए आता है। अब फिसब लगा लीजिये कि विधानसभा कोई रेस्टोरेंट नहीं है बल्कि एक ऐसे लोकतंत्र का ठिया है जहां जनहित से जुड़े मुद्दों पर विमर्श और फैसले होते हैं ,होना चाहिए लेकिन अब नहीं हो पा रहे .
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह कहते हैं कि लगातार तीन सालों से बिना चर्चा के बजट पारित हो रहा है। यह अजीब बात है कि इस बार भी 2.79 लाख करोड़ का बजट बिना चर्चा के विधान सभा में पारित कर दिया गया। यह अजीब बात है कि जब विधायकों ने अपने विधानसभा क्षेत्र के ही नहीं, बल्कि प्रदेश के विकास से संबंधित सैंकड़ों प्रश्र लगा रखे थे, तब विधान सभा की कार्यवाही 21.52 मिनट में ही स्थगित कर दी गई।जसविंदर सिंह के अनुसार जब सरकार दावा कर रही है कि नेता प्रतिपक्ष की सहमति से विधान सभा सत्र समाप्त की गई है तो इस अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक अपराध की जिम्मेदारी से नेता प्रतिपक्ष भी बच नहीं सकते हैं।आपको बता दें कि वर्ष 2020 में कोरोना का बहाना बनाकर विधानसभा की कार्यवाही मात्र 113 मिनट हुई और वर्ष 21 में 62 घंटे में विधान सभा की औपचारिकता पूरी कर ली गई। और इस बार का बजट सत्र भी 21 घंटे 52 मिनट में खत्म कर दिया गया।
सदनों की दुर्दशा के खिलाफ विधायक ही कुछ कर सकते हैं,जनता का इसमें कुछ हस्तक्षेप नहीं है. जनता विधानसभा को पूरे समय चलवाने के लिए न आंदोलन कर सकती है और न धरना-प्रदर्शन .ये राजनितिक दलों का काम है ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि कोई भी सदन में बैठकर काम नहीं करना चाहता .सदन राजनीतिक दलों कि सुविधा,असुविधा को देखते हुए चलाया जाता है .कभी तीज-त्यौहार आड़े आते हैं तो कभी सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक कार्यक्रम .अब न तीज-त्यौहार स्थगित किये जा सकते हैं और न राजनीतिक कार्यक्रम .हाँ विधानसभा को जब चाहे तब और जितने समय के लिए चाहो उतने समय के लिए स्थगित किया जा सकता है .विधानसभा की दुर्दशा के खिलाफ जो चिल्ला रहे हैं उनकी कोई आवाज नहीं है और जिनके पास आवाज है वे चिल्ला नहीं रहे .य विसंगति है जो इंगित कर रही है कि आने वाले दिन और खराब आने वाले हैं .
@ राकेश अचल ।