भाजपा के ‘जाल’ में बंगाल
भाजपा के राजनीतिक दुस्साहस का मै हमेशा से कायल रहा हूँ.भाजपा आने वाले दिनों में बंगाल को जीतने के लिए वो सब करने पर आमादा है जो अकल्पनीय है .किसी जमाने में वामपंथ का गढ़ रहे बंगाल में राजसत्ता हथियाने के लिए भाजपा ने इस बार अपनी सारी ताकत अभी से झौंक दी है .भाजपा यहां भी बिहार की तरह 200 सीटें जीतने का सपना पाले बैठी है और चाहती है कि येन -केन बंगाल से तृणमूल कांग्रेस को समूल उखड फेंका जाये .
बंगाल की राजनीति देश के दूसरे राज्यों की राजनीति से अलग है.यहां उग्रता,मारकाट दूसरे राज्यों के मुकाबले हमेशा से ज्यादा रही है. आजादी के बाद से अब तक यहां सत्ता कांग्रेस,माकपा,बँगला कांग्रेस या कांग्रेस से अलग हुई तृण मूल कांग्रेस के पास रही है. भाजपा चालीस साल से बंगाल की सत्ता का सपना देख रही है. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात्र 3 सीटें मिलीं थीं किन्तु 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतकर भाजपा की उम्मीदों को पंख लग गए और अब भाजपा न सिर्फ बंगाल की सत्ता हासिल करना चाहती ही बल्कि उसका सपना 295 सदस्यों वाली बंगाल की विधानसभा में 200 सीटें हासिल करने का है .
बंगाल में भाजपा के भीम कैलाश विजयवर्गीय बीते अनेक वर्षों से बिसात बिछाने में लगे हैं.बंगाली बाहुबल से निबटने के लिए बीते दिनों उन पर मालवी बाहुबलियों के इस्तेमाल के आरोप भी लगे थे.गत दिवस बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ढा और खुद कैलाश विजयवर्गीय पर जानलेवा पथराव की खबरों के बाद अब वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की गुंजाइश खोजी जा रही है. बंगाल के राज्यपाल दूसरे कैलाश विजयवर्गीय की तरह ममता सरकार को गिराने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हुई है ,लेकिन अब लगता है कि भाजपा ने बंगाल विधानसभा के चुनाव राष्ट्रपति शासन में करने की ही योजना बना रखी है .
बंगाल में यदि आने वाले दिनों में राष्ट्रपति शासन लग भी जाये तो मुझे कोई हैरानी नहीं होगी.आपको भी नहीं होना चाहिए ,क्योंकि ऐसा पहले भी एक बार नहीं तीन बार हो चुका है. बंगाल में पहली बार राष्ट्रपति शासन 1962 में फिर 1968 में और आखरी बार 1970 में लगाया गया था .सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस ने जो प्रोग किये थे भाजपा उन्हीं प्रयोगों को सत्ता में आने के लिए इस्तेमाल करना चाहती है .आज भाजपा इस स्थिति में है कि जो सोचे सो कर गुजरे ,इसलिए यदि बंगाल में आने वाले दिन राष्ट्रपति शासन के हों तो चौंकिए मत .
बंगाल के अतीत में झांके तो वहां दक्षिण पंथियों केलिए कोई जगह कभी रही नहीं .1947 से 1967 तक कांग्रेस और फिर कुछ समय के लिए कांग्रेस से अलग होकर बनी बांग्ला कांग्रेस और निर्दलीय सत्ता में रहे .एक साल के राष्ट्रपति शासन के बाद 69 में फिर बांग्ला कांग्रेस सत्ता में आयी और 1971 में यही बांग्ला कांग्रेस फिर कांग्रेस बनकर सत्तारूढ़ हो गयी. कांग्रेस की अंदरूनी कलह के कारण बंगाल में जून 1971 में फिर राष्ट्रपति शासन लगा लेकिन जब राष्ट्रपति शासन हटा तो फिर कांग्रेस सत्ता में आ गयी .
बंगाल ने 1977 में फिर एक बार राष्ट्रपति शासन का दंश झेला .इसके बाद जब चार महीने बाद बंगाल में विधानसभा के चुनाव हुए तो कांग्रेस जड़ से उखड़ गयी और यहां माकपा सत्ता में आई और लगातार 24 साल सत्ता में रही .ज्योति बसु ने जो कीर्तिमान लगातार मुख्य्मंत्री रहने का बनाया उसे कोई तोड़ नहीं सका .बंगाल ने 20 मई 2011 को फिर एक नया इतिहास लिखा जिसमें कांग्रेस से अलग हुई सुश्री ममता बनर्जी ने माकपा के अखंड राज को समाप्त कर सत्ता हासिल की और तब से अब तक वे माकपा के बाद सत्ता में सबसे ज्यादा समय तक रहने वाली मुख्यमंत्री हैं. यानि कुल मिलाकर बंगाल के 72 साल के इतिहास में 40 साल की भाजपा कहीं नहीं है .2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा की आँख में बंगाल की सत्ता का सपना पल रहा है लेकिन फलीभूत नहीं हो पा रहा है .
सत्ता पाने के लिए साम,दाम,दंड और भेद का निसंकोच सहारा लेने वाली भाजपा इस बार जिस आक्रामकता और तैयारी के साथ बंगाल में गयी है उसे देखकर लगता है कि भले उसे विधानसभा चुनाव में 200 सीटें न मिलें लेकिन उसकी संख्या 3 से 30 तो हो ही सकती है .भाजपा ने बंगाल में सत्ता तक पहुँचने के लिए तृणमूल कांग्रेस के बिभीषन पहले से ही खोजकर अपने साथ कर लिए हैं. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे वैसे-वैसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से नाखुश तृमूकां के नेता भाजपा के साथ खड़े होते जायेंगे .भाजपा शरणार्थियों के बूते सत्ता हासिल करने में महारत हासिल कर चुकी है .मध्यप्रदेश इसका ताजा उदाहरण है .
.बंगाल में कांग्रेस अब कहीं नहीं है और शायद इसीलिए बंगाल में उसकी सक्रियता भी नगण्य है ,लेकिन भाजपा ने वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव में 10.16 फीसदी वोट के साथ 3 विधानसभा सीटें हासिल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी .2019 के लोकसभा चुनाव में 40.64 फीसदी वोट के साथ बंगाल की 18 सीटें जीतकर बीजेपी ने अपने आपको स्वाभाविक विपक्ष के रूप में प्रस्तुत कर दिया है. यही नहीं बूथ स्तर पर बीजेपी और टीएमसी के बीच जारी रोजाना की लड़ाई ने ममता सरकार को एक मजबूत चुनौती पेश की है.माकपा यहां भी प्रासंगिक नहीं रही है लेकिन भाजपा की बढ़त रोकने के लिए माकपा तृमूकां के पीछे खड़ी रह सकती है .
पिछले महीने बिहार में हुए विधानसभा चुनाव के समय भी भाजपा ने 243 सदस्यों की बिहार विधानसभा सीटों में से 200 सीटें जीतने का नारा दिया था लेकिन उसे 75 पर ही संतोष करना पड़ा था .बंगाल में भी यही परिदृश्य रहने वाला है लेकिन भाजपा कहाँ मानने वाली है. बंगाल जीतने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दाढ़ी -मूछें ही नहीं बल्कि सर के बाल बढ़ाने के साथ ही बांग्ला बोलने का अभ्यास किया है .उन्होंने बिहार में भी भोजपुरी बोलने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हुए .बंगाली उन्हें कितना बर्दाश्त कर पाएंगे अभी से कहना कठिन है .हो सकता है कि बंगाल में मोदी का जादू चल निकले और हो सकता है कि वे नाकाम हो जाएँ .
बंगाल को माकपा ने कांग्रेस से तृमूकां ने माकपा से छीना था ,अब यही काम भाजपा को तृमूकां से सत्ता छीनकर करना है ,लेकिन सवाल ये है कि क्या ममता को समूल उखाड़ने में भाजपा कामयाब हो पाएगी .बनगाल के बारे में एक बात और कहना चाहता हूँ कि ये राज्य हमेशा केंद्र के लिए चुनौती बनकर उभरता है लेकिन कभी आगे बढ़कर केंद्र तक नहीं आता.उदाहरण के लिए एक जमाने में जब गर कांग्रेसवाद का ज्वार आया था तब माकपा के ज्योतिबसु सबके लिए सर्वमान्य नेता थे लेकिन वे केंद्र की राजनीति में नहीं आये.वैसे ही ममता केंद्र से राज्य में गयीं सो गयीं दोबारा राज्य से बाहर नहीं निकलीं हालांकि भाजपा के खिलाफ वे हर मंच से गरजीं .अब एक बार फिर बंगाल भाजपा के जाल में हैं देखिये ये जाल कितना प्रभावी साबित होता है .
@ राकेश अचल