म.प्र. भाजपा में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन ?
एमपी में इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा उजागर नहीं किया है, शिवराज सिंह के चेहरे पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा ने ऐसी चाल चली है कि हर वरिष्ठ कद्दावर नेता मुख्यमंत्री बनना चाह रहा है।
रिपब्लिक टुडे,भोपाल।
विधानसभा चुनाव में भाजपा हाईकमान ने मध्य प्रदेश के बड़े नेताओं , केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को मैदान में उतारकर फजीहत कर ली है, सूबे के बड़े नेता गोपाल भार्गव और भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो खुलकर इशारा कर दिया है की वे सीएम बनना चाहते हैं।
बता दे कि इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बड़े नेताओं को ऐसी सीट पर उतारा है जिन पर कांग्रेस का कब्ज़ा है या जिन पर वर्तमान विधायको का रिपोर्ट कार्ड ठीक नही मिला है। जबलपुर में सांसद और पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को पश्चिम विधानसभा से तरुण भानोट के सामने मैदान में उतारा है तो सांसद राव उदय प्रताप की विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा को ध्यान में रखकर पार्टी ने पहले उन्हें
तेंदूखेड़ा से चुनाव लड़ने को कहा लेकिन कांग्रेस के संजय शर्मा के सामने उदय प्रताप की न नुकुर के बाद उन्हें गाडरवारा से कांग्रेस विधायक सुनीता पटेल के सामने टिकिट देकर सीट फतह करने को कहा गया है, वही नरसिंहपुर से जालम सिंह की सर्वे रिपोर्ट ठीक नही आने पर वहां से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को विधायक का चुनाव लड़ने टिकिट दी गई है , प्रहलाद पटेल लोधी समाज के बड़े नेता है ओर वे पहली बार विधानसभा चुनाव में उतर रहे है। तो फग्गन सिंह कुलस्ते को भी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में उतार दिया है , वही प्रदेश की राजनीति का बड़ा चेहरा नरेंद्र सिंह तोमर को भी दिमनी से चुनाव लड़ने को टिकिट दी गई है।
ऐसे में इन बड़े नेताओं की इच्छा अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पड़ने लगी है , इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय ने साफ कह दिया है कि वे विधायक बनने नही बल्कि कुछ बड़ा सोचकर आये है तो गोपाल भार्गव ने भी इस बार चुनाव में उतरने के पीछे मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर कर ही दी , जबकि वे अपने बेटे अभिषेक भार्गव को टिकिट दिलाने के मूड में थे। उधर तीन बार केंद्रीय मंत्री रह चुके और लोधी वोटरों को साधने वाले प्रहलाद पटेल भी कद्दावर और ओबीसी कोटे से मुख्यमंत्री का चेहरा बताए जा रहे है। मंडला जिले से सांसद और केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी आदिवासी कोटे से बड़ा नाम है उनकी भी नजर अब सीएम की कुर्सी पर है। वही इस चुनाव में पार्टी नेतृत्व ने सीएम का चेहरा घोषित न करते हुए शिवराज सिंह के सामने मुशीबत खड़ी कर दी है, 2003 में उमा भारती की मेहनत से भाजपा सरकार बनी थी लेकिन राजनीतिक दांवपेंच के चलते उमाजी को सीएम की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था, आडवाणी और सुंदरलाल पटवा और प्रमोद महाजन की मेहरबानी से शिवराज सिंह को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया जो 2005 से लगातार चुनावी चेहरा बना रहा और उनकी वोटरों से भावनात्मक लगाव भी बढ़ता चला गया , शिवराज सिंह जनता के लिये लोकप्रिय नेता बन गये लेकिन अतिमहत्वाकांक्षा और
राजनीति में कब क्या हो जाये इस बात के फेर में शिवराज सिंह को अब जनता से पूछना पड़ रहा है कि “मैं चुनाव लडू या नही लडू ” तो कही सभा के बीच भावनात्मक भाषण देते हुए शिवराज संकेत दे रहे है कि “लाडली बहनों तुम्हरा भाई चला गया तो याद बहुत आएगा” इस प्रकार स्पीच के कई मायने निकाले जा रहे थे, लेकिन पार्टी ने अब साफ कर दिया है कि मोदी से बड़ा कोई नही है। मतलब साफ है कि
विधानसभा चुनाव में शिवराज़ सिंह सीएम का चेहरा नही होंगे, ऐसे में बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षा भी बढ़ने लगी है, अब सीएम की कुर्सी पर कैलाश विजयवर्गीय और गोपाल भार्गव के अलावा फग्गन सिंह कुलस्ते की भी नजर है। तो केंद्रीय नेतृव की पसंद प्रहलाद पटेल भी हो सकते है , लेकिन आईबी की रिपोर्ट के बाद अब पार्टी फूंक फूंक कर टिकिट वितरण कर रही है, प्रशासनिक अमला भी संशय में है कि ऊंट किस करवट बैठेगा अब कहा नही जा सकता।।