हाथों में भगवत गीता। होठों पर मुस्कान। गले में फांसी का फंदा। मिशन देश की आजादी। उम्र 18 साल कुछ महीने…नाम खुदीराम बोस। आजादी की कीमत क्या है यह वीर सपूतों के बलिदान की कहानियां पढ़िए तब पता चलेगा।।। बिना खड़ग और ढाल के आजादी नहीं मिली है। बम फेंककर प्राण भी गवांने पड़े थे।।। सोलह साल की नाबालिग उम्र खेलने-कूदने और पढ़ाई की होती है लेकिन वो तो फांसी के फंदे से खेल गए। बचपन में माता-पिता का निधन हो गया। नवमीं कक्षा से पढ़ाई छोड़कर नाजुक हाथों से बम बनाना शुरू कर दिए।।। मजिस्ट्रेट को बम से उड़ाने की योजना थी लेकिन लपेटे में अंग्रजी अफसर की पत्नी और बच्चे आ गए।। कम उम्र के बावजूद मौत की सजा दी।। अदालत में जब फांसी सुनाई गई तो मुस्कराने लगे। जज ने पूछा क्या तुम्हें फैसला समझ नहीं आया तो बोले खुदीराम, कहो तो आपको भी बम बनाना सिखा दें।
कोई मौत से कितना निडर हो सकता है इसका दूसरा वाक्या। जेलर खुदीराम को बेटे की तरह मनाने लगता है।। फांसी वाली रात वह चार पके आम खाने को देकर चला गया। सुबह देखा तो चारों आम रखे थे। जेलर ने पूछा आम नहीं खाये। बोले जिसको सुबह फांसी होने वाली हो उसे खाने-पीने का कहां होश। जेलर ने आगे बढ़कर आम उठाए तो छिलके पिचक गए। क्योंकि आम खाकर उनमें हवा भर दी थी। जेलर यह देखकर चोंक गया। यह देखकर बोस ठहाका मारकर जोर-जोर से हंसने लगे। जेलर और जेल के बाकी लोग यह देखकर सोच में पड़ गए मौत सामने खड़ी है और इतनी बेफिक्री… कुछ ही देर में हाथों में भगवत गीता ली और फांसी पर झूलकर अंतिम सफर पूरा किया…11 अगस्त 1908 को महज 18 साल 8 माह 8 दिन की उम्र में आजादी की लड़ाई में शहीद होकर हमेशा के लिए अमर हो गए… ऐसे अनगिनत वीर सपूतों ने अपना सब कुछ बलिदान किया तब जाकर हमें आजादी मिल सकी और हम फर्जी नेताओं को सबकुछ मानकर उनकी स्वार्थ लिप्सा के माध्यम बनकर रह गए।। कोई नहीं सोचता आजादी की कीमत क्या है? अगर हमारे यह पूर्वज भी हमारी तरह खुदके लिए जीते तो आज शायद हम अंग्रेजों की गुलामी कर रहे होते… क्रांतिकारियों के किस्से इतने जल्दी गुमनामी में खो जाएंगे यह किसने सोचा था।।।
कहा तो यह था… शहीदों की चिंताओं पर लगेंगे अब हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही आखिरी निशां होगा।।। पर अफसोश हाय री अहसान फरामोशी… सब कुछ भुला दिया।।।
लता मंगेशकर जी का गाया गीत, कुछ याद उन्हें भी कर लो… कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट घर न आएं, जो लौट के घर न आएं।।। ऐसे सपूतों को याद करके ही रोंगटे खड़े करने के लिए है… जय हिंद, वन्दे मातरम। खुदीराम बोस अमर रहें…विक्रांत राय